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तुम और तुम्हारी पूरी नस्ल / लैंग्स्टन ह्यूज़ / अमर नदीम
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09:39, 28 अप्रैल 2022
कि ऐसी निस्पृह दरिद्रता मौजूद है वहाँ,
कि ऐसी मूढ़ अज्ञानता वहाँ जनती है बच्चे
हताशा
के
की
इन अकिंचन शरणस्थलियों के परदे में —
कि स्वयं तुम्हें ही न तो कोई परवाह रहती है
न ही रहता है पौरुष ललकार कर कहने का
अनिल जनविजय
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