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जीवन यह मधुमास हो, भरकर सातों रंग।
हर दिन रँगे लाल गुलाल सेहो, मिले तुम्हारा संग।
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मैं तो तेरे दर्द -सा, हूँ तेरा ही रूप।
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'''खिंची हुई चहुँ ओर है, फौलादी दीवार'''।
मैं एकाकी इस पार हूँमैं, तुम आहत उस पार।
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डँसना छोड़ें ना कभी, विषधर जैसे लोग।
पंख कटे स्वर भी छिना, पंजों में भी पाश।
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धन, यश या अब स्वर्ग की नहीं , ना है मन में प्यास।
बाहों में भर लो हमें, बस इतनी अरदास।
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