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|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<Poem>
उन घरों से आती आवाज़
कैसे इनसाफ़ की आवाज़ हो
जब कि उनके दरवाज़ों के सामने बेघर लोग पड़े हों ?

कैसे वह धोखेबाज़ नहीं, जो भूखों को
कुछ और ही सिखाता है, सिवाय यह कि भूख को कैसे मिटाना है ?

जो भूखों को रोटी नहीं देता
वह हिंसा भड़काता है

जिसकी नाव में
डूबनेवाले के लिए कोई जगह नहीं
उसमें कोई हमदर्दी नहीं

जो मदद नहीं कर सकता
वह ख़ामोश रहे

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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