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बुलडोज़र / मदन कश्यप

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जो देते हैं घरों को तोड़ने का आदेश
बुलडोज़र सबसे पहले
उनकी आत्मा पर चल चुका होता है
उसके बाद ही वह दस-बीस घरों के साथ
दस-बीस लाख बेबस लोगों के सीने को रौंदता है

तालियाँ बजाने वाले दस-बीस करोड़ लोगों के विवेक कब
रौंद डाले जाते हैं
यह तो बुलडोज़र को भी पता नहीं होता

उसके बड़े-बड़े जबड़ों में मिट्टी और चट्टानें ही नहीं आहें
और चीत्कारें भी फँस रही होती हैं
बच्चों के रुदन और स्त्रियों के आँसुओं से
गीली हुई मिट्टी चिपक रही होती है
उसके विशाल चक्कों से

नए लोकतन्त्र के इस नए गारबेज के बारे में
कुछ पता नहीं होता
बुलडोज़र बनाने और चलानेवालों को

आइंस्टीन को भी कहाँ पता था
कि दुनिया को ऊर्जा समृद्ध करने के लिए
खोजा था जिस परमाणु विखण्डन की प्रक्रिया को उसका
इस्तेमाल मनुष्यता के विनाश के लिए
किया जाएगा !
</poem>
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