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डूबा है सारा-का-सारा
भर भर के कलशी , छलकाई कैसी
 
ओढ़ा है कैसा दुकूल
 
देखूँ तो माला, गूँथी है कैसी,
केशों में है कैसा फूल
 
लौटी हैं गायें, पाखी भी लौटे
लौटे हैं वे अपने नीड़
पथ जितने सारे, सारे जगत के,
 
खोए, अन्धेरे में डूबे
देना मुझे मत फेर
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