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हेमलेट / बरीस पास्तेरनाक/ अनिल जनविजय
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11:12, 28 मई 2022
इस राह का दिख रहा है, वो आख़िरी नाक़ा
अकेला हूँ मैं यहाँ औ’ ढोंग में है सब कुछ डूबा
रंगभूमि नहीं है कोई ये
,
—
ज़िन्दगी है अजूबा
1946
अनिल जनविजय
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