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{{KKCatGhazal}}
<Poem>
 '''7'''
मैं ठिकाना था कभी
वो ज़माना था कभी
आपका हूँ या नहीं
आज़माना था कभी
'''8'''
आप कब किसके नहीं हैं
हम पता रखते नहीं हैं
बात करते हैं हमारी
जो हमें समझे नहीं हैं
'''9'''
ख़ामुशी ने आपकी
क्यों मुझे आवाज़ दी