पाँव तले की मिट्टी खेंच लिया करता है।"
इक शाम बहुत पानी आया तुगयानी तुग़यानी का,और एक भँवर...ख़ुमानी को पाँव से उठाकर, तुग़यानी में कूद गया। अख़रोट अब भी उस जानिब देखा करता है, जिस जानिब दरिया बहता है।अख़रोट का क़द कुछ सहम ग्या हैउसका अक़्स नहीं पड़ता अब पानी में!
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