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06:22, 3 जून 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शशि पाधा
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<poem>
प्रीत तेरी इस माथे की लकीर हो गई
ऐसी पूँजी पाई कि अमीर हो गई
तू ही रस्ता, तू ही मंज़िल
तुझ से ही घर गाँव मेरा
साँसों में जो सुर सा साजे
मीता वो ही नाम तेरा
रंग तेरे में घुल के मैं अबीर हो गई
मैं कितनी अमीर हो गई
जोगन का चोला जो पहना
वैरागन सी घूम रही
प्रीत तेरी की चख ली मिश्री
बिन घुँघरू ही झूम रही
सब कुछ तुझ पे वारा और फ़कीर हो गई
मैं तब से अमीर हो गई
तुझसे रूठी तुझे मनाया
तुझपे तन-मन वार दिया
ओझल हो न पल भर तुमको
अँखियों में सम्भाल लिया
मेरी सूरत अब तेरी तस्वीर हो गई
ऐसी पूंजी पाई कि अमीर हो गई
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