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मेरे दुख/ बबली गुज्जर

2 bytes removed, 05:33, 4 जून 2022
..बेबसी लेकर ही.. जीता रहूँ
न बांध पाऊं कोई मन्नत की गांठगाँठ
किसी खुदाई दरख़्त के तने से कभी,
..उनकी छांव छाँव में बैठकर भी.. तपता रहूंरहूँ
मेरा दुर्भाग्य देखो,
मैंने तुम्हें पाए बगैर ही खो दिया
मरा हुआ दिल लेकर, कैसे अब ज़िंदा रहूंगारहूँगा
कभी सोचना बैठकर,
जिन बातों पर, तुम बात करने से भी कतराती हो
मैं उन बातों को आजीवन, कैसे सहता रहूंगा..रहूँगा.
</poem>