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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप त्रिपाठी
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<poem>
यह जो मनुष्य है
इसमें
सर्प से कहीं अधिक विष है
और
गिरगिट से अधिक कई रंग
दोनों का एक साथ होना
अथवा बदलना
मनुष्य, सर्प और गिरगिट के लिए तो नहीं
परंतु
मानव-सभ्यता के लिए घातक है।
</poem>