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फूलदान / निर्मलेन्दु गुन / सुलोचना वर्मा
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15:20, 26 जून 2022
सजाने का अवसर पाता; — तो देख पाती लीला,
तुम्हारे शरीर को छूकर लावण्य के लोभी फूल
उद्वेलित हृदय से नित्य विपर्यस्त<ref>
परिवर्तित,
अस्त-व्यस्त</ref> होते, ममता से होकर मत्त
कहते आश्चर्यपूर्वक, कहना ही पड़ता
'जूड़े जैसा कोई फूलदान नहीं है।'
अनिल जनविजय
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