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|रचनाकार=[[चंद्रप्रकाश देवल]]
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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
उठी '''खड़ल्या भूतां''' रै पाछै-पाछै
धुराऊ दिस सूं आवतै बायरै
हठनासुर आड़ौ लेय अंबा सूं परणीजण रौ
तिरसूंळा फंफेड़ै है
चवड़ै-धाड़ै गवरी वाळी परकमा में

अठी चामुंडा रै देवरै बारली फरणेट सूं
परकमा में पूग
अेकलौ ऊभौ है काळौ डकरेल
जैठी पाडौ

इण ठालाभूला समिया में
औ पाडौ जांणै ई कोनीं
के उणसूं दोयेक पावंडा धकै बैवै हौ
उणरौ पौराणिक नांव महिसासुर
हरमेस देवी रै थांन रै आखती-पाखती
रांचतौ-कूदतौ निराताळ
बांरू मास-बत्तीस घड़ी
आयै बरसे भख लेय
आप में समोय लेवै जोगमाया
जांणै वै जुगांनजुग रा दोखी नीं व्हैय
नायक-नायका व्है

अेक झटका सूं सूंतीजजा
उणरा पाप-पुन्न
अर वौ ऊभौ व्है जठै इज आडौ पड़ जावै
अरड़ावती
किणी सईका रै जांणै किणी खास मोहरत
वनी रा सून्याड़ में
जागी व्है अलख री अवाज
जागी व्है समिया री कुंडलिनी
इड़ा-सुखमना-पिंगळा भिड़गी व्है माहौ-माह

अद्वैत रो कुजबरौ आघात
सगती-पात
दीठ री असिधार नै बेथाल लपकती जोय
समदर मांय परगटती छोळ
पळकै काळी कांठळ जाय सळवळती
भोपा रा बंध खोळा व्है जावै
अेक काळी सोसनी झांई
घुळै जातरूवां री मांयली इंछावां मांय
अर वांरै भोपणां
ऊग आवै लीलाछम जवारा

अचांणचक किणी सुनकार में
जांणै परगटी व्है प्रीत री भासा
के देही बणगी व्है औचक ओळूं
औ रासौ जोय
हिचकी बंधजा समिया री
थाप खाय जावै देखणियां रौ मूंडौ
रूत हथाई करण रौ मिस लेय
बड़ जावै ऊंडी अंधारी ओवरी
अर वांरा बोल बिखर अंगणाई माथै
सुणीजण सूं पैली
काची पांखां लगाय उड जावै

म्हैं भख देवती जीव
भाळूं थारै पळापळ उणियारै
मुगट माथै जड़्योड़ा नगीनां री करमणी
म्हारी आंख्यां चूंधीजै
मारग न्हाट जावै बिसरावणी रै कांकड़
अर गुमण सूं पैलली हेला पाड़ै
वनी बोली-बोली हूंकारौ नीं देय
फगत आपरी जड़ां तगासै
भाखर माथली भाखरी माथै कोई कोनीं
कोई सुनार सोनो नीं घड़ै
पण अणसुणीजती ठक-ठक रै ठपकारै
पाखी आपरौ माळौ छोड उडै
अर टंवळियां खावता मर-थाक
खोखल रै सरणै चापळै
जाग म्हारा चेता!
भाग फाटण री आस मत राख
भाळ परभातियौ तारौ तगात
चळविचळ है
हिरणी खोड़ी व्हैगी
नखतरां रौ सतोल्यौ बिखरगौ
सूरज री दड़ी सूं
अबै दड़ी लेवण कुण दोड़ै

सगळा चापळगा है
आप-आपरै दड़बै
ऊंडै पंयाळ सूं सुणीजै है
अेक टसकणौ
जापायती इळा रै
कदास-अबकै
वा पाडौ जणै जाळमुखी भोडक वाळौ
हाल नोरतां नीं आया
तौ ई म्हैं बरजण नै ऊभौ हूं, उडीकतौ
के रेजलै पड्यौड़ौ पाडौ
कठैई जावै नीं परौ थांन कांनीं
वैरण!
जांणूं हूं उडीकण री अळखावणी पीड़
अर भेंटियां औचक सगतीपात रौ बीह
म्हारा थरणा कांपै
धूजै धग-धग काळजौ
फड़क-फड़क करै मांयली भोळी कमेड़ी
तौ ई कजांणा क्यूं
माठ नीं झालै बादीलौ मन

रूं-रूं में जगाय अेक लवल्या
आळूं पो’र आपरा इस्ट सूं अेकमेक व्हैण री उतावळी लियां
उडीकै
खेटका वाळी घड़ी
जठै थारी दवायती री सांनी रै समचै
म्हैं अर उडीक कबंध व्है जावां।
</poem>

'''खडल्याभूत :''' मेवाड़ में भीलां रै गवरी निरत में आवता अेक सांग रौ नांव, जिका आपरै पूरा डील माथै चारौ बांध नै आवै। खड़ सूं सिंणगार्योड़ा व्हैण सूं वै खड़ल्या भूत बाजै। रागसी जूंण रौ सांग है इण सारू भूत सागै लागै।
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