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कांमण / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
आवगी भासा सूं लांठौ है
थारौ संवाद
पण अबार म्हारै सांम्ही
खुल नै पसर्योड़ा नैनासाक कार्ड में समायोड़ी है
थारी सैमूदी बोलती काया
जिकी दिप-दिप कर जावै

बिल्लोरी काच जैड़ा निगोट
म्हारा विचार में
तेड़ घाल जावै।
</poem>
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