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घालामेली / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
चांनणौ इत्तौ मगसौ है
के उणियारा तौ सांम्ही बैठा
पण ओळख रा जांदा
निजर ई कांईं करै बापड़ी
अेक में दूजौ भिळ्योड़ौ दरसाव
अेक नवै इज दरसाव में बदळ्ग्यौ
अर लोगां कनै
खुद सूं बंतळ करण री भासा कोयनीं

भायलाचार री मेहंदी बांटतां
किसारियां रै पिदड़कै
राचतोड़ौ रंग उगटग्यौ
मिनखां नै नीं लाधै आपरौ कसूमल
उण में आधौ केसरिया है
कोई रोवणौ उगेरै ई खरी
तो करै कांईं
तिलक सामोद री विलंबित सींव में
बड़ग्यौ है मालकौंस
अर संगत रा ठाठिया बाजा
सुर में नीं आवै है
सारंगी माथै गज रा रगड़का
इण उमेद में है
के सेवट फूटैला रागणी
आं इज कळापां

जितै म्हारी आतमा
उडीक!
</poem>
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