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द्वारका / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
लोग अेक द्वारका हेर परी
साव फीटी मुळक समचै
बिसार लेवै
आपरौ बिद्रांवन

आप अर आपरै कदंब बिचाळै
लांबी बिरांणी भांय धर लेवै
पछै निरांत सूं घटै जिकी पूरी कर लेवै

अैड़ौ कांई दीसै वांनै वठै
द्वारका तौ अजखुद संभयोड़ी
लेवण नै जळ समाध
चूकता ठाटबाट अर सगळी सत्तावां साथै
पछै, अैड़ौ है कांई द्वारका में?

वै जांणै है कोनीं
चेंठण वाळौ इज है पगतळी
बेगौ-मोड़ौ तीर बण कदंब
वै जांणै जित्ती जेज कोनी!
</poem>
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