730 bytes added,
08:09, 17 जुलाई 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[चंद्रप्रकाश देवल]]
|अनुवादक=
|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
थारै रातौ जंचै
म्हनै असमांनी रुचै
जिणसूं कांईं अपां
आवगौ इन्नरधनख बिखेर काढां
दाय पड़ता रंग छोड़, दूजा रंग पोत काढां
कदैई नैठाव सूं विचारजै
सायधण,
आ नैनीक-सी बात नीं है।
</poem>