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प्रग्या / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
थारै रातौ जंचै
म्हनै असमांनी रुचै
जिणसूं कांईं अपां
आवगौ इन्नरधनख बिखेर काढां
दाय पड़ता रंग छोड़, दूजा रंग पोत काढां

कदैई नैठाव सूं विचारजै
सायधण,
आ नैनीक-सी बात नीं है।
</poem>
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