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08:48, 17 जुलाई 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[चंद्रप्रकाश देवल]]
|अनुवादक=
|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
नवी कूंपळां करै कांईं
जद के पांनखर रौ वसीलौ है
बसंत सूं
अै दूजी बातां फालतू है, आं दिनां
दोय परसंगी करै कांईं
जद कै वांरै परसंग रौ सुभीतौ
रड़बड़तौ पड़्यौ है
दोनां रै पगां बिचाळै, आं दिनां
थूं अर म्हैं ई करां कांई
रात रै अंधारै
आंम्हीं-सांम्ही आगिया बैंचण टाळ
के देख वा चमकी प्रीत
म्हैं वांनै निरख
बोलूं-बोलूं प्रीत, जित्तै पाछी अंधारी भींत
म्हैं देवणी चावूं
इणसूं कायौ होय
थनै चांद-सुरज रौ निजरांणौ
तारां री निछरावळ सागै
पण अंधारौ इज अंधारौ आंख्यां आगै
बोदी-खंखड़ आतमा लियां
अपां साजा-सूरा क्यूं हां पछै, आं दिनां
अेक अैड़ा बगत में
जिण में आज री सागटी रौ अेक डांडौ
पूगग्यौ है धकला सईंका तांईं
अर ओळूं रैय-रैय
लारै भाळै अर उडीकै, आं दिनां
जित्तौ सोरौ रुखाळीजै खेत
उत्तौ दोरौ रुखाळणौ हेत
आं दिनां।
</poem>