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बाळण जोग / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
लाय हरेक ठौड़ लागती सुणी
समदर रै ऊंडै पांणी तगात
बांस-वन में बायरा सूं उपजती दीठी
सोर में पलीता आसरै भड़कती दीठी
नीं नीं व्है जठै
टेम-कुटेम सिळगती दीठी

सावचेत रैवै खलक अस्टपोर
नीं छोडै नेरी, करजळायां पूठै ई
इणरौ कांई भरोसौ, जगत दाखै
सै कीं बळ नै भरम
निजरां सांम्ही करण री हूंस राखै।

लाय लागै इण लाय रै
ओळूं रौ कीं खांगौ नीं व्है इणसूं
औ रौ ओ उडीक रौ धारौ।
</poem>
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