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{{KKRachna
|रचनाकार=शशिकान्त गीते
|अनुवादक=
|संग्रह=मृगजल के गुंतारे / शशिकान्त गीते
}}
<poem>
भैया रे ! ओ भैया रे !
है दुनिया जादू- मन्तर की ।

पार समन्दर का जादूगर
मीठा मन्तर मारे
पड़े चाँदनी काली, होते
मीठे सोते खारे
बढ़ी - बढ़ी जाती गहराई
उथली धरती खन्तर की ।

अपनी खाते - पीते ऐसा
करे टोटका - टोना
कौर हाथ से छूटे, मिट्टी
होता सारा सोना
एक खोखले भय से दुर्गत
ठाँय लुकुम हर अन्तर की ।

उर्वर धरती पर तामस है
बीज तमेसर बोए
अहं - ब्रह्म दुर्गन्धित कालिख
दूध - नदी में धोए
दिग-दिगन्त अनुगूँजें हैं
मन काले- काले कन्तर की ।

पाँच पहाड़ी, पाँच पींजरे
हर पिंजरे में सुग्गा
रक्त समय का पीते
लेते हैं बारूदी चुग्गा
इनकी उमर, उमर जादूगर
जादूकथा निरन्तर की ।
</poem>
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