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{{KKRachna
|रचनाकार=शशिकान्त गीते
|अनुवादक=
|संग्रह=मृगजल के गुंतारे / शशिकान्त गीते
}}
<poem>
क्यों रे, भोला !
तू ही इतना
क्यों है भोला ?

धूप कटखनी, हवा मरखनी
नदी विषैली है अजगरनी
तू ही बाहर
दुबका बैठा
सारा टोला ।

रस्ते हैं काटों के जंगल
हर चौराहे खड़ा अमंगल
और सुरक्षा - भाव
बुतों का
कितना पोला ।

बन्द घरों में बहता है डर
तू भी इतना साहस ना कर
किसी क़दम भी
फट सकता है
बम का गोला ।
</poem>
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