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मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ / अज्ञेय
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09:06, 19 अगस्त 2022
क्यों डरूँ मैं क्षीण-पुण्या अवनि के सन्ताप से भी?
व्यर्थ जिस को मापने में हैं विधाता की भुजाएँ-
वह पुरुष मैं,
मत्र्य
मर्त्य
हूँ पर अमरता के मान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!
रात आती है, मुझे क्या? मैं नयन मूँदे हुए हूँ,
Sharda suman
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