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इस सदी का अन्त / शशिप्रकाश

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सूरज की रोशनी को ढँके हुए
बादलों में चमकेगा
चाँदी की किनारी की तरह
इस सदी का अन्त
क़र्ज़-व्यापार-मुनाफ़ा
लूट और नफ़रत की क़ब्र पर I

पौ फटने की तरह
खुलेगी नई सदी
एकदम तुम्हारी आँखों की तरह,
तुम्हारे हाथों की तरह सक्रिय,
उनके मादक स्पर्श से
प्यार भरे समय में I

तबतक
हम इस नरक-सी ज़िन्दगी के ख़िलाफ़
बाग़ी होकर जिएँगे,
बेइन्तहा
एक-दूसरे को प्यार करने के
इन्तज़ार में I

बस, व्यस्त जीते रहेंगे
आगे भी इसी इन्तज़ार में,
गुज़र जाएँगे इसी इन्तज़ार में
अगली पीढ़ी की ख़ातिर
उतना ही,
उनके सुखद भविष्य के लिए
उतना ही,
जितना
अपने स्वाभिमानी वर्त्तमान की ख़ातिर,
कठिनतम दिनों में भी
एक सच्चा इनसान बने रहने के
आत्मगौरव की ख़ातिर !
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