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08:02, 28 अगस्त 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शशिप्रकाश
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<poem>
ग़रीबों-मज़लूमों के नौजवान सपूतो !
उन्हें कहने दो कि क्रान्तियाँ मर गईं
जिनका स्वर्ग है इसी व्यवस्था के भीतर ।
तुम्हें तो इस नर्क से बाहर
निकलने के लिए
बन्द दरवाज़ों को तोड़ना ही होगा,
आवाज़ उठानी ही होगी
इस निज़ामे-कोहना के ख़िलाफ़।
यदि तुम चाहते हो
आज़ादी, न्याय, सच्चाई, स्वाभिमान
और सुन्दरता से भरी ज़िन्दगी
तो तुम्हें उठाना ही होगा
नए इंक़लाब का परचम फिर से ।
उन्हें करने दो ‘इतिहास के अन्त’
और ‘विचारधारा के अन्त’ की अन्तहीन बकवास ।
उन्हें पीने दो पेप्सी और कोक और
थिरकने दो माइकल जैक्सन की
उन्मादी धुनों पर ।
तुम गाओ
प्रकृति की लय पर ज़िन्दगी के गीत ।
तुम पसीने और ख़ून और
मिट्टी और रोशनी की बातें करो ।
तुम बग़ावत की धुनें रचो ।
तुम इतिहास के रंगमंच पर
एक नए महाकाव्यात्मक नाटक की
तैयारी करो ।
तुम उठो,
एक प्रबल वेगवाही
प्रचण्ड झञ्झावात बन जाओ ।
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