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04:26, 29 अगस्त 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शिरोमणि महतो
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
धरती के शरीर में
शिराओं की तरह ...
बहती नदियों में
बहता हुआ जल
शिराओं का लोहू है ।
नदियाँ सभ्यताओं की जननी हैं
उनके बहते हुए जल में
सभ्यताओं के गुणसूत्रों का संचरण होता हैं !
धरती पर एक भी नदी
कभी सूखे नहीं
और न ही कोई नदी दूषित हो
नदियों के पानी का दूषित होना
सभ्यताओं के गुणसूत्रों का संक्रमण है !
नदियों के दूषित हो रहे पानी से
सभ्यताओं के गुणसूत्र संक्रमित हो रहे हैं !
</poem>
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