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भोर का दृश्य / शिरोमणि महतो

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<poem>
ठेरका - सा
लटका हुआ चाँद
आसमान के गले में
बुझे- बुझे से तारक
कर रहे विलाप ।
पलकों के पत्तों से
टपक रही ओस
भीग रहा छोर - अछोर
चिड़िया की चहचहाट से
बकरी ने आवाज़ दी
बेसुध सो रही गाय को
और गाय ने रंभाकर
जगाया किसान को
शुरू हुआ सृष्टि का संलाप ।

बैलों के कन्धो पर
डालकर जुआँठ
किसान ने खोला
कर्म का पहला पाठ
धरती के तन से
लगा हल का फाल
और सृष्टि ने जलाया
अरबों वाट का न्यूयाॅन बल्ब !

सूरज ने पहनाई
कर्मरत किसान को
किरणों की जयमाल !
</poem>
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