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प्रेम / देवी प्रसाद मिश्र

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<poem>
इस प्रेम की शुरुआत इस तरह से हुई कि
जब एक स्त्री ने फ़ोन लगाया और दूसरे
आदमी ने फ़ोन उठा लिया तो स्त्री ने यह
पूछा कि आप कौन बात कर रहे हैं और पुरुष
ने बहुत नर्मी से पूछा कि आप किससे बात
करना चाह रही हैं तो स्त्री ने कहा कि
फ़िलहाल तो वह बात करना चाह रही है तो
पुरुष ने कहा कि कीजिए बात और वे बातें
करने लगे और फिर रोज़ बातें करने लगे और
फिर इतनी बातें करने लगे कि बातें ख़त्म ही
न हों और फिर वे एक दूसरे से प्रेम करने
लगे और फिर ज़्यादा प्रेम करने लगे
और फिर इतना ज़्यादा प्रेम करने लगे कि जिसको
महसूस करना और फिर सहना मुश्किल होने
लगा और जब प्रेम को कह पाना और महसूस
करना और सह पाना हदों से पार होने लगा
तो उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू कर दीं
और एक दूसरे को भेजनी लेकिन जल्दी ही
कविताएँ कम पड़ने लगीं तो उन्होंने पुराने
प्रेमों में लिखी कविताएँ नए प्रेम के लिए
प्रयुक्त करना शुरू कर दीं और इस तरह
पुराने प्रेम की सामग्री नए प्रेम में काम आने
लगी और यह काम दोनों ने ही किया और
दोनों के मन में यह भी था कि अगर कोई
अगला प्रेम करना पड़ा तो इस प्रेम की
सामग्री उस प्रेम में बख़ूबी काम आएगी ।
</poem>
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