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याद है क्या तुम्हें / अलेक्सान्दर ब्लोक / वरयाम सिंह
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04:58, 6 सितम्बर 2022
दुनिया दोबारा दिखने लगती है अजनबी
रंगीन कुहरे से घिरी हुई।
'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
</poem>
अनिल जनविजय
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