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{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
|अनुवादक=सुलोचना वर्मा
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<poem>
प्राचीर की छिद्र में एक नामगोत्रहीन
खिला है छोटा फूल अतिशय दीन
धिक् धिक् करता है उसे कानन का हर कोई
सूर्य उगकर उससे कहता, कहो कैसे हो भाई ?

'''मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा'''
</poem>
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