670 bytes added,
06:43, 6 सितम्बर 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
|अनुवादक=सुलोचना वर्मा
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
प्राचीर की छिद्र में एक नामगोत्रहीन
खिला है छोटा फूल अतिशय दीन
धिक् धिक् करता है उसे कानन का हर कोई
सूर्य उगकर उससे कहता, कहो कैसे हो भाई ?
'''मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader