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{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
|अनुवादक=सुलोचना वर्मा
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<poem>
मेरा सिर नत कर दो, हे देव, तुम्हारी
चरण-धूल के तल में ।
अहंकार सब हे देव मेरे
डुबा दो आँखों के जल में ।

करने को अपना गौरव दान
किया अपना केवल अपमान,
स्वयं को केवल घुमा - घुमा कर
चकराकर मरता हूं पल-पल में ।

अहंकार सब हे देव मेरे
डुबा दो आँखों के जल में ।

स्वयं का कहीं न करूँ प्रचार
मेरे अपने काम में;
अपनी ही इच्छा करो हे देव पूर्ण
मेरे जीवन धाम में ।

माँगता हूँ तुम्हारी चरम शान्ति
प्राणों में तुम्हारी परम कान्ति
मुझे छुपाकर रख लो अपने
हृदय-कमल के दल में ।

अहंकार सब हे देव मेरे
डुबा दो आँखों के जल में ।

'''मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा'''
</poem
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