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06:49, 25 सितम्बर 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ओबायद आकाश
|अनुवादक= भास्कर चौधुरी
|संग्रह=
}}
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<poem>
मैं जब कभी चहलक़दमी के लिए निकलता हूँ
सुलतानपुर मेरे साथ चलता है
जब मैं जूते खोलकर प्रवेश करता हूँ भीतर
मेरे जूते पहरे पे रतजगा करते हैं
उसने अनन्तकाल के लिए यह वादा किया —
एक दिन मैं यह देह छोड़कर कहीं ग़ुम हो जाऊँ यदि
तो यह उसका ख़याल रखेगा
यहाँ तक कि मैं यदि चला जाऊँ दूर कहीं
मेरी देह छोड़कर
'सुलतानपुर' ही लिखूँगा अपना पता,
हमेशा ... ।
</poem>
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