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प्राणों में पराग बन, जो तुम बसे होते नहीं।
-0-9-12- 81( सुकवि विनोद जनवरी 82)
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जो गीत अधरों पर जगा, मैं उसे गाकर रहूँगा।
बेड़ियाँ बाँधे हुए जो, उनको जलाकर रहूँगा ।
इस जनम में नहीं सम्भव, हम मिल सकें या तुम मिलो
सात क्या सौ जनम लूँगा, पर तुम्हें पाकर रहूँगा।
-0-[6-6-2017]
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