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{{KKRachna
|रचनाकार=आन्ना अख़्मातवा
|अनुवादक=अनिल जनविजय
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<poem>
सागर किनारे बने बाग़ में राह पर अन्धेरा छा रहा है।
लैम्पों से झरने लगी है ताज़ा पीली रोशनी
बेहद शान्त है मन मेरा, जैसे गा रहा है
मुझसे बात मत करो उसकी, बातें वो नागफनी

तुम प्यारे हो, वफ़ादार हो, दोस्त रहेंगे हम सदा
घूमेंगे-फिरेंगे, चूमेंगे और फिर बूढ़े हो जाएँगे
दिन, हफ़्ते, महीने गुज़रेंगे, सहजता से सर्वदा
हिम के फ़ायों से हलके होंगे सितारों की तरह, उड़ो।

मार्च 1914, पीटर्सबर्ग

Анна Ахматова
Чернеет дорога приморского сада…

Чернеет дорога приморского сада,
Желты и свежи фонари.
Я очень спокойная. Только не надо
Со мною о нем говорить.

Ты милый и верный, мы будем друзьями…
Гулять, целоваться, стареть…
И легкие месяцы будут над нами,
Как снежные звезды, лететь.

Март 1914 г., Петербург 
</poem>
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