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बाग़ में राह पर अन्धेरा छा रहा है / आन्ना अख़्मातवा / अनिल जनविजय
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06:20, 9 अक्टूबर 2022
घूमेंगे-फिरेंगे, चूमेंगे और फिर बूढ़े हो जाएँगे
दिन, हफ़्ते, महीने गुज़रेंगे, सहजता से सर्वदा
हिम के फ़ायों से हलके होंगे, सितारों
से उड़ेंगे
जैसे
बाक़ायदा।
मार्च 1914, पीटर्सबर्ग
अनिल जनविजय
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