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सुबह चार बजे,
सर्दी में ठिठुरे बरामदे के बाहर,
पुराने ख़ाली साइकलो की कतार ...

किस पन्ने पर कौनसा कालम ?

बरामदे में बैठे "हॉकर" बच्चे,
ख़बरों के गट्ठरों का इन्तज़ार कर रहे हैं ....

माँ ने चाय पिलाकर भेजने के बाद ,
स्टोव को हिलाकर देखा ....

शाम तक चलेगा स्टोव ...

माँ रजाई में घुस गई है,
बाप की रजाई कहीं-कहीं ख़ाली है,
कही खाँस रही है,

अब,
हॉकर बच्चे शहर को जीना सिखाते,
घूमेंगे ...

यह सम्पादकीय में कहीं नहीं छपता ...

'''मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : जगजीत सिद्धू'''
</poem>
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