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|रचनाकार=तेमसुला आओ
|अनुवादक=श्रुति व यादवेन्द्र
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<poem>
मैं देखती रही लपटों को
निगलते हुए
तुम्हारे प्रेम-भरे शब्द
अन्धियारे उल्लास के छल्लों में
खड़खड़ाते पत्ते जैसे नाचते रहे
मौत की व्यथा में और भुरभुरा जाएँ
राख के ढेर में ।

चिटकते रहे अँगारे और अधिक के लिए
जैसे मज़ा ले रहे हों
देखते हुए ज़िन्दा शब्दों को
राख में तब्दील होते हुए ।

'''अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : श्रुति व यादवेन्द्र'''
</poem>
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