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12:51, 22 अक्टूबर 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शंख घोष
|अनुवादक=शेष अमित
|संग्रह=
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<poem>
ज़रा सरको,
ज़रा खिसको
कब से खड़ा हूँ एक ही जगह ।
हे सर्पिणी,
फिसलन में ज़रा हलचल हो !
आदमी, मक्खी, अन्धेरा,
आदमी,मक्खी, अन्धेरा,
जल के साथ धारा सम्मुख ।
चेहरे के सामने,
रौशनी के रू - ब - रू,
आदमी, मक्खी, अन्धकार,
ज़रा फिसलो
ज॒रा सरको !
विसर्पिणी !
ज़रा बढ़ो !
'''मूल बांगला से अनुवाद : शेष अमित'''
</poem>