Changes

पहला व्यक्ति —
पुत्प्ररोदयादयःजातंत्र पुत्प्ररोदयादयः जातंत्र ? प्रजातंत्र है तंत्र केवल,प्रजा सिर्फ शोभाजीवन दे सकती है,तुम्हारी ही कोई प्रभा |
2 | -दूसरा व्यक्ति — तब भी देखता हूँ अपने ही वर्ग के लोगों को बेपरवाह-
1 | - यह पहला व्यक्ति — ये सब तो घर की बातें हैं |याद रखना स्मृति रही है सदा दुर्बल,कौन खोजता है साथ किसी पहचान में !सब जीते हैं वर्तमान के साथ |दूर से ही करते हैं भीड़ से प्यार | जो हैं एकाकी,उनसे नहीं है डर कोई |उसके बाद आते एक-एक को कर दो भीतर-भीतर ही अकेलाफिर ग़ौर से देखो कितने सिर हैं किनके कँधों परपरस्पर मरता हुआ हर एक-वह हो जाये अकेला तुम्हारे ही दोनों हाथों में बँधे धागों से झूलतेआदमी जैसा ही दिखता-आत्मगत सुख और अनजाने आतंक से मान लेंगे सभी-कोई भी अन्याय-
( दूर से ही करते हैं भीड़ से प्यार ।जो हैं एकाकी,उनसे नहीं है डर कोई । उसके बाद आते एक-एक को कर दो भीतर-भीतर ही अकेलाफिर ग़ौर से देखो कितने सिर हैं किनके कन्धों परपरस्पर मरता हुआ हर एकवह हो जाए अकेला तुम्हारे ही दोनों हाथों में बँधे धागों से झूलतेआदमी जैसा ही दिखता — आत्मगत सुख और अनजाने आतंक से मान लेंगे सभी कोई भी अन्याय । बातचीत करते हुये हुए चल रहे हैं दोनों,दोनों की उँगली बंदूक बन्दूक के घोड़े पर है )है।  
'''मूल बांगला से अनुवाद : शेष अमित'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,606
edits