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{{KKRachna
|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=अशोक पाण्डे
|संग्रह=बीस प्रेम कविताएँ और उदासी का एक गीत / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे
}}
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<poem>
हम खो चुके इस गोधूलि तक को
एक - दूसरे का हाथ थामे हमें किसी ने नहीं देखा इस शाम
जबकि नीली रात गिरी दुनिया पर

मैंने अपनी खिड़की से देखा है
सुदूर पर्वतशिखरों पर सूर्यास्त का उत्सव
कभी - कभी सूरज का एक टुकड़ा
जला किया मेरे हाथों के बीच सिक्के की मानिन्द

मैंने तुम्हें याद किया अपनी आत्मा को भींचे
अपनी उस उदासी में, जिसे तुम जानती हो

कहाँ थीं तुम तब ?
और कौन था वहाँ ?
क्या कहता हुआ ?
क्यों आएगा यह सारा प्रेम मुझ तक अकस्मात्
जब मैं उदास हूँ और मुझे लगता है कि तुम दूर ?

गोधूलि के वक़्त हमेशा देखी जाने वाली वह किताब गिर गई
और मेरी पोशाक किसी घायल कुत्ते की तरह लिपट गई मेरे पैरों पर

हमेशा, हमेशा दूर जाती रहती हो शामों से गुज़रती तुम
वहाँ जहाँ गोधूलि प्रतिमाओं को मिटाती चलती है ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
</poem>
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