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{{KKRachna
|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=अशोक पाण्डे
|संग्रह=बीस प्रेम कविताएँ और उदासी का एक गीत / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे
}}
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<poem>
मुझे पसन्द है तुम्हारे वास्ते निश्चेष्ट हो पड़े रहना : यह ऐसा ही है मानो तुम
अनुपस्थित हो,
और तुम मुझे सुनती हो दूर से और मेरी आवाज़ तुम्हें नहीं छूती ।
ऐसा लगता है जैसे तुम्हारी आँखें उड़कर जा चुकीं दूर
और ऐसा लगता है जैसे एक चुम्बन ने मोहरबन्द कर दिया था तुम्हारे मुँह को ।

चूँकि सारी चीज़ें मेरी आत्मा से भरी हुई हैं
तुम उभरती हो चीज़ों से, मेरी आत्या से भरी हुई,
तुम मेरी आत्मा जैसी हो, सपने की एक तितली ।
और तुम 'अवसाद' शब्द जैसी हो ।

मुझे पसन्द है तुम्हारे वास्ते निश्चेष्ट हो पड़े रहना : और तुम लगती हो बहुत दूर
तुम्हारी आवाज़ से लगता है कि तुम शोकग्रस्त हो, एक तितली
कूकती हुई फ़ाख़्ते की जैसी
और तुम सुनती हो मुझे बहुत दूर से, और मेरी आवाज़ तुम तक नहीं पहुँचती
मुझे आने दो निश्चेष्ट अपनी ख़ामोशी में ।

और मुझे बतियाने दो अपनी ख़ामोशी के साथ
जो एक दीए की तरह चमकीली है, एक अंगूठी की तरह साधारण ।
तुम रात जैसी हो, उसकी निश्चेष्टता और तारामण्डलों के साथ ।
एक सितारे की ख़ामीशी है तुम्हारी, उतनी ही दूर और ईमानदार ।

मुझे पसन्द है तुम्हारे वास्ते निश्चेष्ट हो पड़े रहना : यह ऐसा ही है मानो तुम अनुपस्थित हो,
सुदूर और दुख से भरी हुई, जैसे कि तुम मर गई हो ।
तो फिर, बस, एक शब्द, एक मुस्कराहट पर्याप्त है ।
और मैं ख़ुश हूँ
ख़ुश हूँ कि यह सच नहीं है ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
</poem>
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