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डूब गया तम की बाहों में व्याकुल अम्बर ।चलो चलें'''प्रानों के पाहुन''' अब अपने घर ।छूकर तटचंचल लट-सी लहरें लौट गईंजल में घुलकरधुन वंशी की हो गई नई ।रिश्तों की पावन प्रतिमा कोआज सिराकर ।डूबी हैंगीली बालू में करुण कथाएँकहीं भूल सेपाँव न इन परहम रख जाएँ हाथ गहोतब चल पाएँगे सूने पर पर ।-0-
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