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<poem>
रोक लो
पुरवा हवा को
आज तुम मनुहार करके।
पिरा उठते
घाव जो
बरसों पुराने
कौन आता
दर्द की
साँसें चुराने,
टीसती है
गाँठ मन की
देख ली उपचार करके।
 
सिरा आए
धार में
अनुबन्ध सारे
चुका आए थार को
सब अश्रु खारे
अँजुरी में अपने ही
विश्वास के अंगार भरके।
अवसाद ने
जितने लिखे
बही -खाते
बाँचने वालों ने जोड़ी
कुछ बातें
सभी देने-
भेद लोग
आ गए इस बार घर के।
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