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पहचान / मल्सोमि जैकब / यादवेन्द्र
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11:08, 5 नवम्बर 2022
यही धरती तुम्हें थामती है
यही तुम्हें भी खिलाती-पिलाती है
यदि तुम भूल
गए
गई
हों तो
यह भी जान लो —
हम दोनों उसी गीली मिट्टी से बने हैं
हम दोनों को गढ़ा भी
है
एक ही हाथ ने
है
हमें सुखाया-पकाया भी
एक ही सूरज ने अपनी धूप से है
अनिल जनविजय
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