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एक बूँद थी माँगी(मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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11:40, 12 नवम्बर 2022
हम ही खुद को समझ न पाए,ख़ाक दूसरे समझेंगे
जिसके हित हमने ज़हर पिया,उसने सारी पीर लिखी।
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वीरबाला
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