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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|अनुवादक=
|संग्रह=भोर के अधर
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<poem>
इस दुनिया में
जैसे भी हो
तुम उतना ही पाओगे।
जितने पल तक
निर्भय होकर
जितना विष तुम पी पाओगे।
जीना है यदि
कोई मजबूरी
कर लो कम विष से अपनी दूरी
विषधर फैले यहाँ-वहाँ
इनसे कैसे बच पाओगे।
मन है जब तन में
रोना होगा
जितना पाया
उतना खोना होगा
गीतों में है
जब दर्द भरा
हँसी कहाँ से फिर लाओगे।
'''(9-11-2001: वस्त्र-परिधान अंक 48)'''
</poem>