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सापेक्षिक जिन्दगी / अजय कुमार
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20:52, 16 नवम्बर 2022
अलसाये मन से
अपनी अलमारी में
ढूंढ़
ढूँढ
निकालते हो
तुम अपनी
मनपसन्द एक किताब
जितनी देर में
आइने
आईने
में देख कर
ठीक करते हो
आप अपनी टाई
वीरबाला
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