Changes

बादल / लिली मित्रा

1,046 bytes added, 23:23, 18 नवम्बर 2022
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैंने पकड़ा नहीं है बादलों कोअपनी मुट्ठियों में कभी,मैं बस देखती हूँ आस भरी निगाहों सेनीले आकाश पर तैरते हुएया,पहाड़ों की चोटियों से लिपटकर गुज़रते हुए,सुना है वे छूकर गुज़रते हैंतो भीगा जाते हैं अपनी आर्द्रता सेमैंने कभी तुमको भी नहींपकड़ा अपनी हथेलियों से,बस देखती रहती हूँ तैरते हुए बादलों की तरहअपने प्रेमाकाश परचाहती हूँ बन जाना किसी पर्वत का शिखरचाहती हूँ तुम लिपट कर भिगा दो मुझे भी।-0-
</poem>