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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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जिसके पीछे पागल होकर
मैं दौडा अपने जीवन-भर,
जब मृगजल में परिवर्तित हो मुझ पर मेरा अरमान हंसा!
तब रोक न पाया मैं आंसू!
जिसके पीछे पागल होकर<br>जिसमें अपने प्राणों को भरमैं दौडा अपने जीवनकर देना चाहा अजर-भरअमर,<br>जब मृगजल में परिवर्तित हो विस्मृति के पीछे छिपकर मुझ पर वह मेरा अरमान गान हंसा!<br>तब रोक न पाया मैं आंसू!<br>
 जिसमें अपने प्राणों को भर<br>कर देना चाहा अजर-अमर,<br>जब विस्मृति के पीछे छिपकर मुझ पर वह मेरा गान हंसा!<br>तब रोक न पाया मैं आंसू!<br>  मेरे पूजन-आराधन को<br>मेरे सम्पूर्ण समर्पण को,<br>जब मेरी कमज़ोरी कहकर मेरा पूजित पाषाण हंसा!<br>तब रोक न पाया मैं आंसू!</poem>
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