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नादाँ है उसे प्यार जताना नहीं आता
जज़्बों को लबों पर उसे लाना नहीं आता
उसकी इसी मासूमियत पे लोग फ़िदा हैं
नज़रें जो झुका ले तो उठाना नहीं आता
 
पहले तो सभी अजनबी होते हैं दोस्तो
इस घर में मेरे कोई बेगाना नहीं आता
 
बच्चों की गवाही अदालतें भी मानर्ती
उनको कोई गुनाह पचाना नहीं आता
 
पैसे की ज़रूरत किसे पड़ती नहीं यारो
पैसा भी मगर सबको कमाना नहीं आता
 
अच्छा है जो क़िस्मत की लकीरें नहीं दिखें
अंधे की हथेली पे ख़ज़ाना नहीं आता
</poem>
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