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छोकरागीरी / पीयूष दईया
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,
14:33, 11 नवम्बर 2008
दिखा नहीं फिर
'''"एक मुक्का भी कभी खुली हुई हथेली और उंगलियाँ था"--
'''
येहदा अमिख़ाई की यह कविता-पंक्ति पढ़कर
'''
</poem>
अनिल जनविजय
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